आमतौर पर मैं चाय नहीं पीता हूँ लेकिन वो चाय की चुस्की आज भी याद है जिसे मैंने पीया था। कारण जो भी बन पडा हो लेकिन था बेहतर और भला हो क्यों ना साथ में जो मेरा सबसे करीबी दोस्त जो था। तब तो चाय सीधे दार्जलिंग से आयी हुई ही लगती है।
वैसे तो एक पत्रकार हूँ,आपसे बातें करना चाहता हूँ,इसलिए लिखने जैसे कठिन काम करने की कोशिश करता हूँ। इस काम के अलावा मन के उन विचारों को आप तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ जिसे ना तो किसी ने देखा है, और ना ही किसी ने सुना है। एक शब्द में बताउँ तो मन के उन अनछुए पहलू को आपको बताने का मन करता है, जिसे मन में रख कर अकुलाहट होती है। इसी प्रयास में इंडियानामा के ज़रिए आप तक पहुँचने की कोशिश है । ये इंडियानाम आपको मेरे इस भारतभूमि के कई पहलू से भी परिचय कराएगा..।
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