Sunday 10 July 2011
बढते कदम एक ओर..
माँ से कहता हूँ कि बैराग्य मेरी नियती है तो माँ तो मानती ही नहीं। लेकिन मेरा मन बार बार वैराग्य धारण कर कुछ समाज से जुडी बातों पर काम करने को करता है। इसी लिए मैं अपने आप को कभी कभी उस वेश भूषा
त्रियंबकेश्वर की याद
एक यादगार
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