Sunday 10 July 2011

बढते कदम एक ओर..


माँ से कहता हूँ कि बैराग्य मेरी नियती है तो माँ तो मानती ही नहीं। लेकिन मेरा मन बार बार वैराग्य धारण कर कुछ समाज से जुडी बातों पर काम करने को करता है। इसी लिए मैं अपने आप को कभी कभी उस वेश भूषा

त्रियंबकेश्वर की याद


मैं शुरुआती दौर से एक घुम्मक्कडी का जीवन बीताना चाहता था। लेकिन ना तो संयोग जुट पाता था और ना ही कोई मौका ही मिल पाता था। लेकिन मेरी नौकरी ने ही इस ओर प्रेरित किया कि घुम्मक्कडी जीवन बीता सकूँ। लिहाजा त्रियंबकेश्वर भी घूम आया जो एक शांत और सुखद अनुभव दे गया।

एक यादगार


कई दिनों के बाद एक बार फिर मैं गेटवे ऑफ इंडिया पर गया लगभग तीन साल पहले हुई घटनाएँ एक बारगी से मेरे आखों के सामने आ गई जिन्हें याद कर के मैं सोंच में पड गया।

दोस्ती के एक पल


दोस्तों के साथ बिताए पल हरदम यादगार रहते हैं।भले ही व्यस्त जीवन हो या कोई और लेकिन आनंद दे जाता है।